

लखनऊ विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार सिर चढ़कर बोल रहा है। अवैध निर्माण का लखनऊ में बोलबाला है, जिधर देखो उधर अवैध निर्माण का बोल बाला है, कोरोना महामारी को लखनऊ विकास प्राधिकरण के अभियंताओं ने अवसर में बदल दिया है, एलडीए अभियंताओं द्वारा बड़े पैमाने पर लखनऊ में अवैध निर्माण कराये जाने की शिकायतें हमारी टीम को मिल रही थी, लिहाज़ा हमारी टीम ने एलडीए के प्रवर्तन विभाग में फैले भ्रष्टाचार की हकीकत जानने के लिए हमने एलडीए जोन चार में चल रहे निर्माणों की पड़ताल की तो पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में लिप्त मिला, सवाल है जब पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार में लिप्त है तो कैसे मिलेगी भ्रष्टाचार से आजादी। पेश एक रिपोर्ट-
आपदा में अवसर
कोरोना महामारी के दौर में जहाँ हर कोई परेशान है, कारोबार बंद हैं लोग घरों में बंद हैं, खाने पीने और रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए लोग जद्दोदहद कर रहे हैं वहीँ लखनऊ विकास प्राधिकरण के अभियंता कोरोना काल को आपदा में अवसर में बदलने में लगे हैं, कोरोना काल में अवैध निर्माण के लिए एलडीए अभियंताओं ने अपने ‘रेट’ भी बढ़ा दिए हैं, प्राधिकरण द्वारा सील किये गए अवैध निर्माणों को कोरोना काल में फिर से निर्माण करने की छूट दे दी गई है, खुलेआम अवैध निर्माण किये जा रहे हैं।
लाखों अवैध निर्माण फिर भी कार्रवाई नहीं
लखनऊ शहर में 2 लाख से अधिक अवैध निर्माण हैं। इनमें लगभग 30 हजार से भी अधिक मकान और इमारतें ऐसी हैं जिनका एलडीए से नक्शा पास नहीं किया गया। इनमें से सैकड़ों अवैध इमारतों अवैध मल्टी स्टोरी बिल्डिंग्स की लिस्ट कोर्ट को सौंप रखी है। लेकिन बार-बार के आदेशों के बावजूद इन अवैध निर्माणों पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी। इसमें अधिकतर निर्माण प्रभावशाली लोगों के हैं। एलडीए अधिकारियों का अवैध निर्माणों को संरक्षण देने की बात से इसलिए भी इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि कोई इमारत रातों रात नहीं बनती। इन इमारतों के निर्माण के दौरान ही इन पर कार्रवाई की जानी चाहिए थी। लेकिन भ्रष्टाचार की वजह से ऐसा नहीं हो सका।
अवैध निर्माण खुद सुना रहे हैं भ्रष्टाचार की कहानी
एलडीए भी मानता है कि शहर में लगभग 40 प्रतिशत रेजिडेंशियल कॉलोनियों और घरों में व्यावसायिक कार्य हो रहे हैं। राजधानी के लगभग 1.5 लाख से अधिक मकान ऐसे हैं जिनमें कारोबार चल रहा है। अकेले जोन 4 में डालीगंज, फ़ैज़ाबाद रोड (अब अयोध्या रोड) सीतापुर रोड, आईटी चौराहा से निराला नगर, कपूरथला, पुरनिया चौराहा से लेकर राम-राम बैंक और इंजीनियरिंग कॉलेज तक और इंजिनीरिंग कॉलेज से टेढ़ीपुलिया तक मौजूद शोरूम, रेस्टोरेंट, दुकानें सब की सब एलडीए के भ्रष्टाचार की कहानी कह रही हैं।
केस नंबर 1
डालीगंज पुल से लेकर फ़ैज़ाबाद रोड (अब अयोध्या रोड) आईटी चौराहा तक एक दर्जन से अधिक अवैध निर्माण आज भी जारी हैं, निराला नगर में अवैध होटलों, अवैध अपार्टमेंटों और शॉपिंग कॉम्प्लेक्सों की तो भरमार है, जिधर देखेंगे उधर अवैध निर्माण दिखाई देंगे, इसमें तो कुछ ऐसे निर्माण भी हैं , जिनके ध्वस्तीकरण के आदेश एक बार नहीं कई कई बार हो चुके हैं, लेकिन एलडीए में तैनात अभियंताओं (अवर अभियंता, सहायक अभियंता, अधिशाषी अभियंता) को ये अवैध निर्माण नहीं दिखाई देते हैं, वजह है इनसे प्रतिमाह मिलने वाली वसूली है।
केस नंबर 2
कपूरथला सहारा इंडिया भवन से नेहरु बाल वाटिका चौराहे तक आज भी आवासीय मानचित्र पर एक दर्जन से अधिक अवैध काम्प्लेक्स के निर्माण चल रहे हैं, कपूरथला रोड पर प्रगति बाज़ार के सामने दो अवैध निर्माण इसी कोरोना काल में शुरू हुए और आज भी जारी हैं, हालाँकि इन निर्माणों के खिलाफ तत्कालीन अवर अभियंता ने कार्रवाई की थी और निर्माण कार्य बंद कराया था, लेकिन मौजूद अवर अभियंता ज्ञानेश्वर सिंह के चार्ज लेते ही ये अवैध निर्माण फिर से शुरू हो गए, इस सम्बन्ध में मुख्यमंत्री पोर्टल (आईजीआरएस) पर शिकायत दर्ज कराई गई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई, निर्माण कार्य बदस्तूर जारी है, बल्कि अवर अभियंता ने उक्त शिकायतों के सम्बन्ध में बिना शिकायतकर्ता से बात किये हुए यह कहते हुए अपनी आख्या रिपोर्ट लगा दी की उक्त निर्माणों के खिलाफ “उत्तर प्रदेश नगर योजना एवं विकास अधिनियम की धारा 1973 की सुसंगत धाराओं में कार्रवाई की गई है, जो न्यायालय विहित प्राधिकारी में विचाराधीन है.”
केस नंबर 3
इसी तरह कपूरथला रोड से नेहरू बाल वाटिका तक कई अवैध निर्माण चल रहे हैं, जोकि काफी समय से बंद या प्राधिकरण द्वारा सील किये गए थे, उनका निर्माण कार्य भी शुरू करा दिया गया है. कपूरथला में एक ऐसा ही मामला सदफ़ सेंटर के सामने सहर टावर के बगल में भी चल रहा है, जिस भूखंड पर यह अवैध निर्माण किया जा रहा है वहां पर नगर निगम द्वारा सार्वजनिक “मूत्रालय” बनवाया गया था, लेकिन उसको भी “सेटिंग”कर ध्वस्त क्र अवैध काम्प्लेक्स तैयार कर दिया गया, उक्त अवैध निर्माण को तत्कालीन अवर अभियंता ने सील किया था और मामला विहित प्राधिकारी के न्यायालय में हैं लेकिन अपने को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी बताने वाले अवर अभियंता ज्ञानेश्वर सिंह ने फिर से निर्माण शुरू करा दिया।
केस नंबर 4
पुरनिया चौराहे से स्वाद मिष्ठान भण्डार (बेलीगारद चौराहा तक) कई अवैध निर्माण चल रहे हैं, यहाँ भी कई शिकायतें हुईं लेकिन नतीजा सिफर अवर अभियंता को यहाँ अवैध निर्माण दिखे ही नहीं, उल्टा यह कहते हुए शिकायतों का निस्तारण कर दिया गया कि उक्त निर्माण हो ही नहीं रहे हैं, और ऐसा कोई भूखंड ही नहीं है जिसकी शिकायत की गई है।
केस नंबर 5
पुरनिया चौराहे से स्वाद मिष्ठान भण्डार रोड पर साहू डिजिटल स्टूडियो के बगल में बी-29, सेक्टर के. अलीगंज में आवासीय मानचित्र पर अवैध निर्माण किया जा रहा है, जिसके खिलाफ तत्कालीन अवर अभियंता ने कार्रवाई करते हुए निर्माण बंद कराने था, लेकिन जैसे ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का करीबी अवर अभियंता का यहाँ पदार्पण हुआ अवैध निर्माण फिर से शुरू कर दिया गया, मुख्यमंत्री पोर्टल (आईजीआरएस) पर शिकायत दर्ज कराई गई, तो फिर से वही आख्या लगा दी गई, कि मामला विहित प्राधिकारी के न्यायालय में विचाराधीन हैं, और निर्माण कार्य बदस्तूर आज भी जारी है।
केस नंबर 6
स्वाद मिष्ठान भण्डार से राम राम बैंक चौराहे तक एक दर्जन अवैध निर्माण हैं, जोकि यहाँ मौजूद शोरूम, रेस्टोरेंट, दुकानों और अपार्टमेंटों की कहानियां खुद ही बयां कर रहे हैं, लेकिन एलडीए के सूरदासों को ये अवैध निर्माण नहीं दिखते हैं, राम राम बैंक चौराहे के पास एसबीआई कॉलोनी में “रेड हिल स्कूल” के पास अवैध अपार्टमेंट का निर्माण किया जा रहा है, कार्रवाई इसके खिलाफ भी नहीं की गई, इसकी भी शिकायत मुख्यमंत्री पोर्टल (आईजीआरएस) के माध्यम से की गई है।
केस नंबर 7
अब बात करते हैं इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे से टेढ़ी पुलिया रोड की, यहाँ दाहिनी पट्टी पर एलडीए द्वारा कमर्शियल प्लाट आवंटित किये हैं, मानचित्र भी स्वीकृत हैं, लेकिन नियमों की धज्जियाँ खुलेआम उड़ाई जा रही हैं, विशाल मेगा मार्ट के पास और पेट्रोल पंप के पास कई निर्माण चल रहे हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
एक करोड़ तक की होती है प्रतिमाह वसूली
जानकार हैरानी होगी, लेकिन यह सच है, अकेले जोन 4 अलीगंज अभियंता इस इलाके से एक करोड़ तक की वसूली करते हैं, इस इलाके में 100 से अधिकार निर्माण चल रहे हैं, जिससे प्रतिमाह एक लाख रूपये तक की वसूली या ये कहें अवैध निर्माण को संरक्षण देने सुविधा शुल्क लिया जाता है, इसके अलावा प्रति स्लैब एक से दो लाख रुपये अलग से वसूले जाते हैं, और ये वसूली जोन 4 के “सुपरवाइज़रों” की मदद से “अवर अभियंता” कराता है, अवैध रकम का बंटवारा “अधिशासी अभियंता” के माध्यम से किया जाता है, एलडीए के किस किस अधिकारी तक और कितनी रकम पहुंचानी है ये अधिशासी अभियंता तय करता है।
क्या एलडीए उपाध्यक्ष को नहीं है कोई खबर
एलडीए सूत्रों की मानें तो प्रतिमाह आने वाली अवैध वसूली का हिस्सा उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश तक नहीं जाता, उपाध्यक्ष का दमन पाक साफ़ बताया जाता है, लेकिन इतनी बड़ी “लूट” उपाध्यक्ष की नाक के नीचे हो रही है वो भी सिर्फ एक जोन से, और इसकी जानकारी विभाग के मुखिया को नहीं हो, यह बात अचंभित करने वाली है, हो भी सकता है जानकारी न हो, क्यूंकि “चिराग तले ही अन्धेरा” होता है।